वायदा कारोबार एक पुराना सट्टा बाजार है जहां बिचौलियों खाद्य उत्पादक और उपभोक्ता के बीच महंगाई की एक बडी दरार बना देते हैं। खाद्यान्नों का सौदा एक बिचौलियों के हाथ से दूसरे, फिर तीसरे और चौथे, पांचवे, छठवें तक चला जाता है। मतलब कीमत बढती जा रही है और मुनाफा सटोरिये कमा रहे हैं। नुकसान किसान और उपभोक्ता का। भारत सरकार ने इस बाजार को वैधानिक बना दिया। देशभर में 24 एक्सचेंज खोल दिए। राष्ट्रीय स्तर के दो एक्सचेंज मुंबई और एक अहमदाबाद में काम कर रहा है। इस बाजार से किसान सीधे तौर पर जुडकर अपने उत्पाद का व्यापारिक बुद्घि के साथ सौदा कर पाएगा और अपनी हालत सुधार सकेगा शायद यही सोच इस बाजार के मूल में रही होगी। परंतु बिचौलियों और सटोरियों ने पूरी तस्वीर उलट दी है। इन बिचौलियों पर केन्द्र की भी नजर है। एक सरकारी कमेटी ने इस कारोबार से बिचौलियों को हटाने की सिफारिश कर दी है यह कहकर कि इनकी वजह से ही किसानों को अपने उत्पाद का कम दाम मिल रहा है और सारी मलाई बिचौलियों खा रहे हैं। दरअसल पूरे देश में वायदा कारोबार को लेकर मतभेद बना हुआ है।
कुछ विद्वान कहते हैं कि इस कारोबार की तकनीकी जानकारी किसानों को होती नहीं है और न वो कमोडिटी एक्सचेंज में आते हैं। बिचौलिये ही उनके सारे कारोबार को अंजाम दे देते हैं। आज महंगाई अगर आसमान छू रही है तो उसके पीछे भी वायदा बाजार के यही सटोरिये हैं। कुछ विद्वानों का तर्क है अगर सटोरिये नहीं होंगे तो किसान और खरीददारों के बीच तालमेल कौन बैठाएगा, सौदे कौन करवाएगा। कुल मिलाकर सरकार को किसानों में इतनी जागृति तो लानी होगी कि किसान खुद इस बाजार में अपनी उपज का मोल लगाए तभी महंगाई पर अंकुश लगेगा और किसान भी समर्थ होंगे। इस वायदा बाजार में कई बार उत्पादन से अधिक के सौदे हो जाते हैं। एक जानकारी के मुताबिक ग्वार के बीज का उत्पादन देश में लगभग 16०० लाख मीट्रिक टन हुआ इसके विरुद्घ वायदा बाजार में 1692 मीट्रिक टन का कारोबार हुआ। मतलब कुल उपलब्ध माल से 92 मीट्रिक टन ज्यादा का सौदा हो गया। इसी तरह चीनी, कालीमिर्च, गुड, मेन्था आदि कई वस्तुओं का उपलब्धता से अधिक का व्यापार हो जाता है। देश में मेन्था का उत्पादन 1०० करोड रुपए का है और इसका वायदा कारोबार 1००० करोड रुपए से अधिक का है।
वायदा बाजार पूरी दुनिया में तेजी से बढ रहा है। पहले लोग सोने-चांदी और शेयरों में निवेश करते थे, अब खाद्यान्न भी निवेश का एक बडा कारोबार बन गया है और जब कोई व्यापारी किसी वस्तु में इनवेस्ट करेगा तो भरपूर लाभ भी कमाएगा। फिर इस प्रक्रिया में उत्पादक किसान और उपभोक्ता के आर्थिक विकास की जगह ही कहां बचती है। इस व्यापार में उत्पादन या उपलब्धता से कहीं ज्यादा का कारोबार पहले ही हो जाता है। जब उतनी मात्रा में खाद्यान्न उपलब्ध ही नहीं होगा तो संकट का जन्म स्वाभाविक है।